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मुखपृष्ठ : हमारे बारे में : निदेशक : भूतपूर्व निदेशक : डॉ. के एन शंकरा

गत अद्यतन: 1-Apr-2015

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डॉ. के एन शंकरा

[अवधि : 2005-2008]

डॉ. के.एन.शंकरा, जून 2005 से मई 2008 तक केन्द्र के निदेशक रहें। इसके पूर्व, वे वर्ष 2002 से 2005 तक अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के निदेशक रहें। उन्होंने अपनी डॉक्टोरेट की उपाधि इलेक्ट्रिकल संचार इंजीनीयरिंग में भारतीय विज्ञान संस्थान से प्राप्त की । तत्पश्चात आपने वर्ष 1971 में अपनी कार्यकाल प्रारंभ की । उन्होंने संचार नौसंचालन, भू ग्रहीय प्रेक्षण, मौसम नीतभार तथा संबंधित आंकडा संसाधन तथा भू प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्सैट-2ए तथा इन्सैट-2बी के सह परियोजना निदेशक रहे तथा इन उपग्रहों के लिए प्रेषानुकरों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने सूक्ष्मतरंग प्रौद्योगिकी तथा अंतरिक्षयान इलेक्ट्रॉनिकी के क्षेत्र में अपना विशिष्ट योगदान देते हुए वर्ष 1996 तक SAC में समूह निदेशक के पद पर रहे । वर्ष 2001 में उन्होंने उपग्रह संचार कार्यक्रम कार्यालय (एस.सी.पी.ओ) के निदेशक तथा कार्यक्रम निदेशक, इन्सैट के रूप में इसरो, मुख्यालय में कार्य संभाला । इस कार्यक्षमता में, वे संचार उपग्रह कार्यक्रम के समग्र योजना तथा निदेशन को देखते रहें। वे इसरो मुख्यालय, बेंगलूरु में आपदा प्रबंधन सहायता हेतु कार्यक्रम निदेशक भी रहें।

वे दूरसंचार इंजीनीयर्स, भारत, संस्थान के “फेलो”, भारतीय खगोल सोसाइटी के आजीवन सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय मॉइक्रोइलेक्ट्रॉनिकी एवं पैकेजिन्ग सोसाईटी तथा उन्नत अध्ययन के राष्ट्रीय संस्थान के असोसियेट भी रहें।

डॉ. शंकरा ने विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान हेतु कई पुरस्कार प्राप्त किए। उन्होंने 1995-96 के लिए आई.ई.टी.ई-आई.आर.एस (83) पुरस्कार के प्राप्त किय तथा वर्ष 1988 के लिए अंतरिक्ष व वांतरिक्ष हेतु “ओम प्रकाश भसिन” पुरस्कार प्राप्त किय। उन्होंने वर्ष 2000 के दौरान इलेक्ट्रॉनिकी में विशिष्ट योगदान हेतु रामलाल वाद्वा स्वर्ण पदक और वर्ष 2000 के लिए अंतरिक्ष प्रणाली प्रबंधन हेतु भारतीय खगोलीय सोसाइटी और इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रॉनिकी तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी के लिए “वासविक” पुरस्कार प्राप्त किया। उनको भारतीय राष्ट्रीय जैवचिकित्सा इंजीनीयरिंग सोसाइटी द्वारा प्रशंसा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

वर्ष 2004 में, भारत सरकार द्वारा उपग्रह प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।