English
मुख्य विशयवस्तु में जाएं
ISRO logo Prof U R Rao Header part Dr. Vikram Sarabhai National emblem

मुखपृष्ठ : हमारे बारे में : निदेशक : भूतपूर्व निदेशक : डॉ. के कस्तुरी रंगन

गत अद्यतन: 1-Apr-2015

<< वापस

डॉ. के कस्तुरी रंगन

[अवधि : 1990-1994]

डॉ. के कस्तूरीरंगन 1990 से 1994 तक यू.आर.एस.सी. के निदेशक पद पर रहें। अगस्त 27, 2003 को सेवा समाप्त करने का पूर्व उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष अंतरिक्ष आयोग तथा भारत सरकार अंतरिक्ष विभाग के सचिव, के रूप में नौ सालों तक भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को शानदार ढंग से चलाया । वे वर्ष 2003 से 2009 तक संसद के राज्य सभा सदस्य रहें। वर्तमान में वे भारत सरकार के योजना आयोग के सदस्य हैं ।

निदेशक, यू.आर.एस.सी. के रूप में, उनके नेतृत्व में केन्द्र ने इन्सैट-2 श्रृंखला उपग्रह, आई.आर.एस उपग्रह तथा वैज्ञानिक उपग्रहों के विकास सहित अनेक प्रमुख उपलब्धियोँ प्राप्त की। इसके पूर्व, वे भारत के प्रथम दो प्रयोगात्मक भू प्रेक्षण उपग्रह, भास्करा-1 व 2 के भी परियोजना निदेशक रहें और तदुपरांत प्रथम प्रचालनात्मक भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह, आई.आर.एस-1ए के समग्र निदेशन हेतु उत्तरदायी रहें। उन्होंने प्रेक्षण उपग्रहों के प्रमोचन के अलावा विश्व के उत्तम नागरिक उपग्रह, आई.आर.एस-1सी तथा 1डी के अभिकल्प, विकास व प्रमोचन, द्वितीय पीढी का कार्यान्वयन तथा इन्सैट उपग्रहों के तृतीय पीढी के प्रारंभिक चरणों का भी मार्गदर्शन किया। इन प्रयत्नों ने भारत को, मुख्य अंतरिक्ष कार्यक्रमवाले कुछ छः देशों में एक उत्क्रस्ट अंतरिक्ष-अग्रणी राष्ट्रों में खडा कर दिया ।

डॉ. कस्तूरीरंगन ने आनर्स के साथ मुंबई विश्वविद्यालय से स्नातक तथा भौतिकी में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की और उन्होंने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद में कार्य करते हुए वर्ष 1971 में प्रयोगात्मक उच्च ऊर्जा खगोलशास्त्र में डॉक्टोरेट की डिग्री प्राप्त की।

एक खगोल भौतिकी वैज्ञानिक होते हुए, उन्होंने ब्रह्मांडीय एक्स-किरण स्रोत, खगोलीय गामा ब्रह्मांडीय एक्स-किरण तथा निम्न वायुमंडल में व्यापक तथा महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत तथा विदेश दोनों में अनेक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अकादमी के सदस्य हैं। वर्तमान में वे बेंगलूरु में भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष हैं तथा भारतीय विज्ञान कांग्रेस के महा अध्यक्ष हैं।

वे भारतीय विज्ञान अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय इंजीनीयरिंग अकादमी, भारतीय अस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी, राष्ट्रीय दूरमापकी फोरम, भारतीय मौसम विज्ञानीय सोसाईटी तथा तृतीय विश्व विज्ञान अकादमी के “फेलो” हैं। वे इलेक्ट्रॉनिकी तथा दूरसंचार इंजीनियर संस्थापन के विशिष्ट “फेलो”, भारतीय अस्ट्रनॉमिकल सोसाइटी के संस्थापक सदस्य, भारतीय भौतिकी संघ, भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ तथा भारतीय सुदूर संवेदन सोसाइटी के आजीवन सदस्य और भारतीय वायुयानिकी सोसाइटी तथा केरला विज्ञान अकादमी के मानद “फेलो” हैं।

वे अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय यूनियन के सदस्य और अंतर्राष्ट्रीय खगोलिकी अकादमी तथा उसके न्यासी (द्र्स्टी) बोर्ड के सदस्य भी हैं। वे कई गौरवान्वित अंतर्राष्ट्रीय समितियों के प्रधान पद पर रहे जैसे - भू प्रेक्षण उपग्रह (सी.ई.ओ.एस), कॉसपार/आई.सी.एस.यू के विकासशील देशों में अंतरिक्ष अनुसंधान पैनल और यू एन – ई.एस.सी.ए.पी के वरिष्ठ अधिकारी स्तर पर समिति बैठक "दिल्ली घोक्षणा" (1999-2000) जो कि क्षेत्र के मंत्रियों दारा स्वीक्रत ।

वे अंतरिक्ष विज्ञान व प्रौद्योगिकी शिक्षा (यू.एन-सी.एस.एस.टी.ई) के लिए यू एन केन्द्र के शासकीय बोर्ड के, आई.आई.टी चेन्नै के राज्यपालों के बोर्ड, रामन अनुसंधान के शासकीय परिषद तथा राष्ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशाला के अनुसंधान परिषद के भी अध्यक्ष रहे हैं।

उन्होंने कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं जिसमें इंजीनीयरिंग में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, वांतरिक्ष में श्री. हरि ओम आश्रम डॉ. विक्रम साराभाई प्रेरित पुरस्कार, खगोलिकी में एम पी बिर्ला स्मारक पुरस्कार, अनुप्रयुक्त विज्ञान में श्री. एम एम चुगानी स्मारक पुरस्कार, विज्ञान प्रौद्योगिकी में एच.के.फिरोडिया पुरस्कार, विश्वभारती, शांतिनिकेतन द्वारा रविन्द्र पुरस्कार, अंतरिक्ष क्षेत्र में विशिष्ट योगदान हेतु डॉ. एम.एन.साहा जन्म शताब्दी पदक भी शामिल हैं।

वे पद्मश्री, पद्म भूषण तथा पद्म विभूषण से सम्मानित हुए हैं। उन्होंने खगोलिकी, अंतरिक्ष विज्ञान, अंतरिक्ष उपयोग क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय दोनों पत्रिकाओं में 200 से भी अधिक लेख प्रकाशित किया है तथा 6 किताबों का संपादन किया है।