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मुखपृष्ठ : हमारे बारे में : निदेशक : श्रि एम. शंकरन,

गत अद्यतन: 02-Jun-2021


श्रि एम. शंकरन

[अवधि : 2021 से आगे]

श्रि एम. शंकरन, भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) के एक विशिष्ठ वैज्ञानिक हैं।


उन्होंने 01 जून 2021 को यू.आर.राव उपग्रह केंद्र (यू.आर.एस.सी), जो इसरो के सभी उपग्रहों के अभिकल्प, विकास एवं प्रापण हेतु देश का अग्रणी केंद्र है, के निदेशक के रुप में कार्यभार ग्रहण किया। वे संप्रति संचार, नौवहन, सुदूर संवेदन, मौसम विज्ञान एवं अंतर ग्रहीय अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में राष्ट्र की बढती हुई मांगों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपग्रहों के निर्माण हेतु इसरो के उपग्रह समुदाय का नेतृत्व कर रहे हैं।


निदेशक के रुप में कार्यभार ग्रहण करने से पहले वे संचार एवं ऊर्जा प्रणाली क्षेत्र में उपनिदेशक के रुप में कार्यरत थे तथा विकास का नेतृत्व कर रहे थे। यू.आर.एस.सी/इसरो में अपने 35 वर्ष के अनुभव के दौरान, उन्होंने सौर व्यूह, ऊर्जा प्रणाली, उपग्रह अवस्थिति प्रणाली तथा निम्न भू-कक्षा (LEO) उपग्रह, भूस्थिर उपग्रह, नौवहन उपग्रह के लिए आर.एफ. संचार प्रणाली तथा बाहय अंतरिक्ष मिशन जैसे चंद्रयान, मंगल कक्षित्र मिशन (MOM) इत्यादि क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।


इसरो के उपग्रहों के लिए 70V बस के सफल प्रापण, ऊर्जा जनन हेतु अभिकल्प, अंतर ग्रहीय मिशन जैसे चंद्रयान- 1 व 2, मंगल कक्षित्र मिशन, एस्ट्रोसैट में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई, उन्होंने सौर पैनल, बैटरी प्रणाली इत्यादि के संविरचन तथा परीक्षण हेतु देश में उद्योगों का विकास किया।


हाल ही के वर्षों में उनके कार्यों में उड्डयानिकी प्रणाली के लघुरुपण, इलेक्ट्रॉनिकी एवं ऊर्जा प्रणाली के घटकों के स्वदेशीकरण, सूक्ष्म/लघु उपग्रह बस के विकास इत्यादि का नेतृत्व किया है। वे उड्डयानिकी प्रणाली अभिकल्प, गगनयान कार्यक्रम की अर्हता एवं प्रापण का नेतृत्व कर रहे हैं।


उन्होंने वर्ष 1986 में भारतीदासन विश्वविद्यालय, तिरुचिरापल्ली से भौतिकशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के बाद, वे इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में शामिल हुए, जिसे वर्तमान में यू.आर.एस.सी के रुप में जाना जाता है।


उन्हें वर्ष 2017 में इसरो के उत्कृष्ठ निष्पादन पुरस्कार तथा वर्ष 2017 एवं 2018 के इसरो समूह उत्कृष्ठता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों तथा प्रसिद्ध जर्नलों में उनके लगभग 50 शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं।